Thursday, February 11, 2010

तुम आना कभी...

तुम आना कभी उसी जगह, जहा मिले थे 
हवा बनके आना तुम,  लहेरे बनके आना तुम
आज भी वो है वही जिसे हम छु ए थे कभी
वो चाँद वो लहेरे, वो टिमटिमाते तारे,
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे |

वो पूल जहा सुरज डूबता है, पूछेगा हमें,
तुम  आना कभी उसी जगह रोशनी बनके,
डूबते सूरज  के साथ मुस्कुराना कभी,
वो मीठी  बातें, वो पलकों के इशारे करती ,
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे |

तुम आना कभी हमारे साथ,  वक्त से पहेले,
वो आती लहेरो  के साथ मुस्कुराना तुम्हारा,
वो झुकती निगाहों से गुनगुनाना तुम्हारा ,
हलके से पास एके समझाना, हलकेसे दिल को छु जाना,
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे |

वो पहाडी जिसपेसे, लेहेरोंको देखाथा हमने ,
वो डूबती शाम में, बिखरे रंगोंको समेटना तुम्हारा,
वो बदल,  वो पंच्छी , वो खुशबू, वो लम्हे,
तुम आना कभी उसी जगह, खुशबू बनके,
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे |

वो धीरे से आके मुस्कुराना तुम्हारा,
गुस्से में थी तुम  शायद कभी,
जब बाद्लोने पानी बिखेरा था हमपे,
वो छत्ता , वो हलकेसे भीगना, तुम आना कभी बारिश बनके...
सब  ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे|

वो गुस्से में आके झगड़ना तुम्हारा ,
झगड़ते झगड़ते मुस्कुराना तुम्हारा
वो सिडियोंपे बैठके बाते बनाना,
उन सारे पलोम्में इंतजार करना, तुम  आना कभी वक्त से पहेले ...
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे |

याद आयेंगी वो सारी बातें तुम्हारी,
वो गलियां, वो रास्ते जहा गये थे कभी
तुम आना कभी उसी पत्थर के पास,
जिस पत्थर के दिल  को खिलना सिखाया
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही साथ हमारे |

वो सागर की लहेरे, वो सूरज की किरणे,
वो लहराती हवा छु जाती थी आँचल तुम्हारा
वो कश्ती, वो पल, वो चांदनी रात,
वो हलकेसे हाथोंको हाथोंपे रखना, तुम आना कभी वक्त से पहेले....
सब ढूंढेंगे तुम्हे वही  साथ हमारे |

तुम आना कभी.... हम धुंडते ही रह गये.
एक हवसी आयी तो होश आया और तुम्हिमें हम फिर खो गये...
तुम आना कभी,  इंतज़ार रहेगा...

Ashish....

4 comments:

Kanchan Lata said...

Too gud yaar.........

very touching.

Pradnya said...

Very nice aashish

Mayuri Nirwan said...

Vah yaar!!!!!! what a poem.....

Deepika Mallick said...

It is good.....
But who is the inspiration behind it?